लखनऊ: दो दशक पहले तत्कालीन मुलायम सरकार द्वारा जोर-शोर से लागू की गई इंटीग्रेटेड टाउनशिप नीति के तहत अब तक अधूरी 28 परियोजनाओं के पूरा होने का रास्ता साफ हो गया है। राज्य सरकार ने परियोजनाओं को पूरा करने के लिए संबंधित विकासकर्ताओं को तमाम सहूलियतें देने का निर्णय किया है। परियोजनाओं के लिए न्यूनतम 25 एकड़ भूमि जुटाने की अनिवार्यता को समाप्त करते हुए सरकार ने 12.50 एकड़ पर भी इंटीग्रेटेड टाउनशिप विकसित करने की छूट दे दी है। विकासकर्ताओं को अधूरी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए तीन से पांच वर्ष की मोहलत मिलेगी। हालांकि, इसके लिए विकासकर्ता को 80 हजार रुपये प्रति एकड़ समय विस्तार शुल्क देना होगा।
इस बैठक में जहां पर्यटन क्षेत्र को मजबूत करने के लिए नई नियमावली को मंजूरी दी गई, वहीं अयोध्या में मंदिर संग्रहालय को हरी झंडी मिल गई है। उत्तर प्रदेश अधीनस्थ पर्यटन सेवा नियमावली, 2025 को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है। इस निर्णय से पर्यटन विभाग की प्रशासनिक संरचना मजबूत होगी। और राज्य में पर्यटन गतिविधियों को तेजी से बढ़ावा मिलेगा। प्रत्येक मंडल मुख्यालय पर ‘जिला दिव्यांग पुनर्वास केन्द्र’ (DDRC) की स्थापना के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी गई है।
वर्ष 2005 में तत्कालीन मुलायम सरकार ने न्यूनतम 25 से अधिकतम 500 एकड़ भूमि पर इंटीग्रेटेड टाउनशिप विकसित करने की नीति लागू की थी। तमाम तरह की छूट देने के साथ ही राज्य में अरबों रुपये के निवेश और बड़े पैमाने पर आवासीय मांग के पूरा होने का दावा नीति के तहत किया गया। नीति के तहत विकासकर्ताओं ने लखनऊ, कानपुर, आगरा, मथुरा-वृंदावन, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद में 18 टाउनशिप विकसित करने के प्रस्ताव दिए।
मुलायम सरकार के बाद मायावती और फिर अखिलेश यादव की सरकार के दौरान परियोजना के तहत कुछ खास काम नहीं हुआ। वर्ष 2014 में अखिलेश सरकार ने नीति पुनरीक्षित की तो मुरादाबाद, मेरठ, प्रयागराज आदि शहरों में भी विकासकर्ताओं ने इंटीग्रेटेड टाउनशिप विकसित करने संबंधी प्रस्ताव दिए।
सरकार ने पर्यटन विभाग में संरचनात्मक सुधार की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। विभाग में व्यापक संरचनात्मक सुधार करते हुए उत्तर प्रदेश अधीनस्थ पर्यटन सेवा नियमावली-2025 लाई गई है। नई नियमावली के तहत पर्यटन अधीनस्थ सेवा सम्वर्ग में प्रकाशन अधिकारी, अपर जिला पर्यटन अधिकारी तथा पर्यटन सूचना अधिकारी के पद अब सीधी भर्ती तथा पदोन्नति दोनों माध्यमों से भरे जाएंगे। इससे जुड़े पर्यटन विभाग के प्रस्ताव को सोमवार को हुई राज्य कैबिनेट की बैठक में मंजूरी मिल गई।
इस संबंध में पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने कहा कि नई नियमावली के लागू होने से पूर्व के सभी नियम, आदेश तथा दिशा-निर्देश अवक्रमित हो गए हैं। विभाग के अनुसार, प्रकाशन अधिकारी के पदों के लिए उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से अभ्यर्थियों का चयन किया जाएगा। जबकि पर्यटन सूचना अधिकारी के पदों की भर्ती उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के द्वारा की जाएगी। नई व्यवस्था से चयन प्रक्रिया अधिक पारदर्शी व प्रतिस्पर्धात्मक होने की उम्मीद है।
सेवा संरचना में व्यापक प्रावधान
नई नियमावली में नियुक्ति, सेवा शर्तों, पदोन्नति, अर्हता तथा वरिष्ठता सहित अन्य प्रशासनिक प्रावधानों का भी समावेश किया गया है। प्रमुख सचिव पर्यटन, अमृत अभिजात ने कहा कि यह नियमावली पर्यटन विभाग में एक समन्वित, सक्षम व आधुनिक सेवा संरचना सुनिश्चित करेगी। राज्य सरकार का मानना है, कि इन सुधारों से प्रदेश में पर्यटन विकास को नई गति मिलेगी और प्रशासनिक दक्षता में वृद्धि होगी।
इन प्रस्तावों को मिली मंजूरी
राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा लेने की अवधि ड्यूटी का हिस्सा होगी. उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता खिलाड़ियों को बड़ी राहत देते हुए स्पष्ट कर दिया है। कि अब वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं, ट्रेनिंग कैंपों और संबंधित गतिविधियों में शामिल होने की पूरी अवधि, आवागमन के समय सहित ‘ड्यूटी’ मानी जाएगी। योगी कैबिनेट के इस फैसले से खिलाड़ियों को अनुमति लेने में होने वाली मुश्किलें खत्म होंगी।
कैबिनेट की बैठक के बाद वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने बताया कि अब तक ‘अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता सीधी भर्ती नियमावली-2022’ में ऐसी कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं थी। सेवा नियमावली में अवकाश संबंधी प्रावधान न होने के कारण खिलाड़ियों को प्रतियोगिताओं और प्रशिक्षण शिविरों में भाग लेने के लिए अनुमति प्रक्रिया में दिक्कतें आती थीं।
उन्होंने कहा कि अब सरकार नई प्रणाली लागू कर रही है। जिसमें साफ व्यवस्था होगी कि नियुक्त खिलाड़ी जब भी किसी राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता, कैंप या प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लें, वह अवधि सेवा अवधि (ड्यूटी) मानी जाएगी। इसमें आने-जाने का पूरा समय भी शामिल होगा। इससे न केवल खिलाड़ियों को अपने खेल करियर में आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। बल्कि राज्य का प्रतिनिधित्व भी और मजबूत होगा, क्योंकि अब उन्हें अनुमति लेने में कोई बाधा नहीं आएगी।
जल और वायु प्रदूषण की एनओसी लेना होगा महंगा, नवीनीकरण भी
प्रदेश में उद्योग लगाने वालों, टाउनशिप तैयार करने वालों और शहरी निकायों द्वारा चलाए जा रहे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों (एसटीपी) के लिए जल व वायु प्रदूषण का अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेना और उनका नवीनीकरण करवाना महंगा होगा।
मंगलवार को योगी कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश जल (मल और व्यावसायिक बहिस्राव निस्तारण के लिए सहमति) (तृतीय संशोधन) नियमावली, 2025 और उत्तर प्रदेश वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) (चतुर्थ संशोधन) नियमावली, 2025 को मंजूरी दे दी। वर्ष 2008 के बाद अब दरों में इजाफा किया जा रहा है। प्रदूषण के स्तर, उद्योगों में पूंजी निवेश की रकम और आदि के मुताबिक दरों को कई श्रेणियों में बांटा गया है।
वन एवं पर्यावरण विभाग के मुताबिक केंद्र सरकार ने इस साल जनवरी में शुल्कों के दरें फिर से तय करने के निर्देश दिए थे। शुल्क की सात श्रेणियां तय की गई हैं। हर दो साल में दरों में 10 प्रतिशत का इजाफा किया जा सकता है। उद्योगों की लागत के मुताबिक शुल्क की न्यूनतम व अधिकतम सीमाएं तय की गई हैं। वहीं, प्रदूषण के स्तर को तीन हिस्से में बांटा गया है, हरा, नारंगी और लाल और इसके मुताबिक शुल्क का निर्धारण किया गया है। जल और वायु अधिनियम के मुताबिक अलग-अलग शुल्क तय किए गए हैं।
1000 करोड़ से ज्यादा का निवेश करने वाले सभी उद्योगों को अब एक स्लैब में लाया गया है। पहले 1000 करोड़ रुपये का निवेश करने वाले उद्योगों को एनओसी के लिए 1.5 लाख रुपये जमा करने होते थे। और 75 हजार रुपये सालाना नवीनीकरण शुल्क था। अब उन्हें प्रदूषण का स्तर हरा होने पर 1.5 लाख, नारंगी होने पर 1.72 लाख और लाल होने पर 1.95 लाख रुपये होगा। इतना ही नवीनीकरण शुल्क भी हर साल लगेगा।
बागपत में विकसित होगा अंतरराष्ट्रीय योग एवं आरोग्य केंद्र
इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश सरकार ने जनपद बागपत के ग्राम हरिया खेड़ा, तहसील-बागपत स्थित 70.885 हेक्टेयर भूमि पर एक अंतर्राष्ट्रीय योग एवं आरोग्य केंद्र विकसित करने का फैसला किया है। पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने बताया कि यह परियोजना सार्वजनिक-निजी सहभागिता (पीपीपी) मोड के माध्यम से विकसित और संचालित की जाएगी। यह केंद्र योग, प्राकृतिक उपचार और वेलनेस टूरिज्म को बढ़ावा देगा। पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री ने बताया कि ‘राज्य सरकार का लक्ष्य अयोध्या को विश्वस्तरीय सुविधाओं के आधार पर संस्कृति और आस्था के वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करना है।
उन्होंने बताया कि नई भर्ती नियमावली और अंतरराष्ट्रीय योग एवं वेलनेस सेंटर के जरिए पर्यटन सेवाएं अधिक दक्ष, जवाबदेह और जन-उन्मुख बन सकेंगी। उन्होंने कहा कि कैबिनेट के निर्णयों के साथ उत्तर प्रदेश एक समृद्ध पर्यटन अनुभव और अधिक संगठित, जन-केंद्रित पर्यटन प्रणाली की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ा रहा है।’
चंदौली-सकलडीहा-सैदपुर मार्ग अब चार लेन का होगा। मंगलवार को योगी कैबिनेट ने इसकी मंजूरी दे दी है। चार लेन के इस राज्य मार्ग की लंबाई तकरीब 30 किलोमीटर होगी। इसमें 491.47 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। चंदौली जिला में चंदौली-सकलडीहा-सैदपुर मार्ग चंदौली जिले को गाजीपुर से जोड़ने वाला अहम मार्ग है। यह मार्ग गाजीपुर, जौनपुर, आजमढ़ और बलिया जाने के लिए वाराणसी शहर के बाईपास के रूप में इस्तेमाल होता है। यह रास्ता चार लेन चौड़ा होने से यातायात सुगम होगा। इससे क्षेत्र का सर्वांगीण विकास होगा।
कानपुर के सिविल लाइन्स स्थित दि जार्जिना मैकराबर्ट मेमोरियल हॉस्पिटल की 45 हजार वर्म मीटर नजूल भूमि को पीपीपी आधार पर मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल बनाने के लिए कानपुर विकास प्राधिकरण (केडीए) को हस्तांतरित किया जाएगा। यह हस्तांतरण कोर्ट के आदेश के अनुपालन में किया गया है। कैबिनेट ने इस हस्तांतरण प्रस्ताव को भविष्य में दृष्टांत के तौर पर इस्तेमाल न किए जाने की भी सहमति दी है। जेलों में अब जाति के आधार पर श्रम कार्य नहीं बांटे जाएंगे। अभी तक जाति के आधार पर श्रम कार्य बांटे जा रहे थे। अब इन पर रोक लगा दी जाएगी। जेल मैनुअल में इस बदलाव का प्रस्ताव भी लागू कर दिया गया है।
वर्ष 2023 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका इसको लेकर डाली गई थी। कि जेल मैनुअल में जाति के आधार पर काम दिए जाने पर रोक लगाई जाए। इस पर तीन अक्तूबर, 2024 को कोर्ट ने देश के सभी राज्यों को इस नियम में बदलाव करने को कहा था। इसके लिए कोर्ट ने सभी राज्यों को तीन महीने का समय दिया था। अभी तक की व्यवस्था में बंदियों को जाति के आधार पर श्रम आवंटन, बैरकों का पृथक्करण किया जाता रहा है। कैबिनेट में उत्तर प्रदेश जेल मैनुअल (प्रथम संशोधन), 2025 के प्रस्ताव को पास कर दिया गया।
राज्य सरकार उत्तर प्रदेश में निवेश करने वाली तीन कंपनियों को प्रोत्साहन राशि देगी।मुख्य सचिव के अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति की बैठक में इन कंपनियों को प्रोत्साहन राशि देने का फैसला हुआ था। इसके आधार पर कैबिनेट मंजूरी के लिए प्रस्ताव रखा गया। इसके मुताबिक मेरठ में स्थापित मेसर्स पसवारा पेपर्स लिमिटेड को विस्तारीकरण के लिए 1,50,15,711 रुपये, मेसर्स केआर पल्प एंड पेपर्स लिमिटेड शाहजहांपुर 56,39,785 रुपये और मेसर्स बृंदावन एग्रो इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड को इकाई के विस्तार के लिए 17,06,26,256 रुपये की राशि जारी की जाएगी।
सौभाग्य और ग्राम्य ज्योति योजना की सीएजी रिपोर्ट रखी जाएगी सदन में
कैबिनेट ने मंगलवार को सौभाग्य और ग्राम्य ज्योति योजना की सीएजी रिपोर्ट शीतकालीन सत्र में रखे जाने को मंजूरी दे दी। इस प्रस्ताव को राज्यपाल के पास अनुमति के लिए भेजा जाएगा, जहां से मंजूरी मिलने के बाद इसे विधानमंडल के पटल पर रखा जाएगा। सरकार ने वाराणसी में निर्माणाधीन डॉ. सम्पूर्णानंद स्पोर्ट्स स्टेडियम, सिगरा के संचालन, प्रबंधन और रखरखाव तथा राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना के लिए ‘भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के साथ हुए एमओयू को मंजूरी दे दी है।
यह वही स्टेडियम है, जहां ‘खेलो इंडिया’ योजना के तहत आधुनिक स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया गया है। एमओयू के तहत स्टेडियम परिसर में मौजूद खेल सुविधाओं; जैसे, भवन, ढांचे, मैदान और अन्य अवसंरचनाओं को साई को सौंपा जाएगा, ताकि यहां नेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना और संचालन सुचारु रूप से हो सके।
वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने बताया कि राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र बनने के बाद प्रदेश के उभरते खिलाड़ियों को बड़ा मंच मिलेगा। विभिन्न आयु वर्गों और खेल विधाओं के प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की पहचान की जाएगी और उन्हें राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए उच्च स्तरीय प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जाएगा। इससे न सिर्फ उत्तर प्रदेश की खेल प्रतिभा को मजबूत प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राज्य का प्रतिनिधित्व भी और सशक्त होगा। सरकार का मानना है कि इस पहल से खिलाड़ियों के सामने भविष्य में रोजगार और खेल करियर दोनों की संभावनाएं बढ़ेंगी, साथ ही वाराणसी देश के प्रमुख खेल केंद्रों में से एक के रूप में उभरकर सामने आएगा।
गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे पर घाघरा पुल के पास बनेगा तटबंध
गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे के बीच में आने वाले घारा पुल के किनारे एप्रोच तटबंध के क्षतिग्रस्ट भाग पर स्थाई सुरक्षात्मक काम कराए जाने की वजह से इसकी निर्माण लागत में 246.37 करोड़ रुपये की वृद्धि हो गई है।एक्सप्रेसवे के निर्माण अब 7283.28 करोड़ के स्थान पर अब 7529.65 करोड़ रुपये खर्च होगा। इसके मुताबिक गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे पैकेज-1 के चैनेज सं0 45+980 किमी पर स्थित घाघरा पुल के एवेटमेंट ए1 साइड के एप्रोच तटबंध के क्षतिग्रस्त भाग के स्थायी सुरक्षात्मक काम कराया जाना है। लिंक एक्सप्रेसवे के निर्माण के लिए व्यय वित्त समिति ने 246.37 लाख करोड़ के वृद्धि की संस्तुति की है।
इस प्रकार उक्त बचाव कार्य को शामिल करते हुए गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे की पूर्व स्वीकृत लागत 7283.28 करोड़ में इस राशि को शामिल किए जाने से परियोजना लागत बढ़कर 7529.65 करोड़ हो गई है। कैबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है। एक्सप्रेसवे का निर्माण हो जाने से स्थानीय क्षेत्र में विकास तेजी से होगा और दूर-दराज से आने वाले यात्रियों को सुगम व तीव्र यातायात की सुविधा उपलब्ध हो जाएगी। इससे लगभग 38 लाख मानव दिवस रोजगार सृजित होने की संभावना है।
पेंशन की हकदारी का अध्यादेश सरकार ले जाएगी शीतकालीन सत्र में
प्रदेश सरकार विधानमंडल के शीतकालीन सत्र में उत्तर प्रदेश पेंशन की हकदारी तथा विधिमान्यकरण अध्यादेश- 2025 बिल के तौर पर पेश करेगी। दोनों सदनों की मुहर के बाद यह स्थायी कानून में तब्दील हो जाएगा। इस साल अगस्त में कैबिनेट ने अध्यादेश को मंजूरी दी थी, जिसके कार्यकारी आदेश सितंबर में जारी हुए थे।
सरकार यह अध्यादेश पेंशन पात्रता को स्पष्ट करने के लिए लाई थी। इस उद्देश्य पेंशन के दावों को नियंत्रित करना है। अध्यादेश के मुताबिक केवल वही कर्मचारी पेंशन के पात्र होंगे, जिनकी नियुक्ति नियमावली के अनुसार किसी स्थायी पद पर हुई है। दैनिक वेतनभोगी और संविदा कर्मचारी, भले ही वे सीपीएफ या ईपीएफ के सदस्य हों वे पेंशन का दावा नहीं कर सकेंगे।
अध्यादेश एक अप्रैल 1961 से प्रभावी है। सरकार यह अध्यादेश ऐसे मामलों को नियंत्रित करने के लिए लाई थी, जिसके तहत विभाग की नियमावली या विनियमावली में तय भर्ती प्रक्रिया पूरी न करने के बावजूद नौकरी करने वालों ने सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन का दावा किया था। इस तरह के तमाम मामले अदालतों में लंबित हैं। राज्य सरकार अमृत-दो में कानपुर और बरेली में 580 करोड़ रुपये से पेयजल परियोजनाओं का काम कराएगी। इससे लाखों लोगों को फायदा होगा।
वित्त मंत्री सुरेश खन्ना के मुताबिक कानपुर ईस्ट और साउथ सर्विस डिस्ट्रिक्ट में 316.78 करोड़ की लागत से पेयजल पाइप लाइन योजना का विस्तार किया जाएगा। इससे कानपुर नगर निगम क्षेत्र के ईस्ट और साउथ सर्विस डिस्ट्रिक्ट में 100% आबादी तक शुद्ध पेयजल मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा। इस परियोजना पर खर्च होने वाली राशि में केंद्र सरकार 76.10 करोड़, राज्य सरकार का 182.64 करोड़ और नगर निगम 45.66 करोड़ रुपये देगा। परियोजना से कानपुर शहर के 33 वार्डों को सीधा लाभ मिलेगा और ईस्ट-साउथ जोन की पूरी आबादी को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध होगा।
पेयजल परियोजना से प्रदूषित जल से होने वाली बीमारी में कमी आएगी और लोगों को राहत मिलेगी। बरेली नगर निगम में पेयजल प्रणाली को नए सिरे से विकसित करने के लिए फेज-1 पुनर्गठन परियोजना को व्यय वित्त समिति ने मंजूरी दे रखी है। उसने 265.95 करोड़ रुपये की लागत से काम कराने की मंजूरी दी है। इसके आधार पर कैबिनेट से प्रस्ताव मंजूरी के लिए रखा गया।
इस परियोजना पर खर्च होने वाली राशि में केंद्र सरकार 85.30 करोड़, राज्य सरकार 145.04 करोड़ और नगर निगम 25.59 करोड़ रुपये देगा। परियोजना के पूरा होने पर बरेली में लगभग 92% आबादी, यानी करीब 9 लाख लोगों को नियमित और सुरक्षित पेयजल आपूर्ति की सुविधा मिलेगी। दोनों परियोजनाओं से उत्तर प्रदेश के दो बड़े नगरों में पेयजल आपूर्ति व्यवस्था अधिक विश्वसनीय और आधुनिक होगी। सरकार का मानना है कि अमृत 2.0 के तहत ये निवेश शहरी बुनियादी ढांचे को नई मजबूती देंगे और करोड़ों लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाएंगे।
हर मंडल में होंगे दिव्यांग पुनर्वास केंद्र
हर मंडल में एक दिव्यांग पुनर्वास केंद्र (डीडीआरसी) स्थापित किए जाएंगे। वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने बताया कि नए डीडीआरसी खुलने से प्रदेश में दिव्यांगजनों को एक ही जगह पर सर्वे, पहचान, शिविर, सहायक उपकरण, कृत्रिम अंग फिटमेंट और प्रशिक्षण जैसी सुविधाएं आसानी से उपलब्ध होंगी। साथ ही फिजियोथेरेपी, स्पीच थेरेपी जैसी नैदानिक सेवाएं भी इन केंद्रों पर होंगी। आधार कार्ड और दिव्यांग प्रमाणपत्र जैसे जरूरी दस्तावेज यहां बनाए जा सकेंगे।
इस फैसले से दिव्यांगजनों को योजनाओं का लाभ समय पर और सुगमता से मिल सकेगा और उनके पुनर्वास की पूरी प्रक्रिया मजबूत होगी। मौजूदा समय में 38 जिलों में इस तरह के केंद्र चल रहे हैं। हालांकि ज्यादातर जगहों पर तमाम दिक्कतों की वजह से इनका संचालन प्रभावित हो रहा है। अब सरकार पूरे ढांचे को नए सिरे से संसाधनों से लैस करते हुए संचालित करने जा रही है, ताकि दिव्यांगजनों को मिलने वाली सेवाओं में कोई बाधा न आए।
पेंशन की हकदारी का अध्यादेश सरकार ले जाएगी शीतकालीन सत्र में
प्रदेश सरकार विधानमंडल के शीतकालीन सत्र में उत्तर प्रदेश पेंशन की हकदारी तथा विधिमान्यकरण अध्यादेश- 2025 बिल के तौर पर पेश करेगी। दोनों सदनों की मुहर के बाद यह स्थायी कानून में तब्दील हो जाएगा। इस साल अगस्त में कैबिनेट ने अध्यादेश को मंजूरी दी थी, जिसके कार्यकारी आदेश सितंबर में जारी हुए थे। सरकार यह अध्यादेश पेंशन पात्रता को स्पष्ट करने के लिए लाई थी। इस उद्देश्य पेंशन के दावों को नियंत्रित करना है।
अध्यादेश के मुताबिक केवल वही कर्मचारी पेंशन के पात्र होंगे, जिनकी नियुक्ति नियमावली के अनुसार किसी स्थायी पद पर हुई है। दैनिक वेतनभोगी और संविदा कर्मचारी, भले ही वे सीपीएफ या ईपीएफ के सदस्य हों वे पेंशन का दावा नहीं कर सकेंगे। अध्यादेश एक अप्रैल 1961 से प्रभावी है। सरकार यह अध्यादेश ऐसे मामलों को नियंत्रित करने के लिए लाई थी, जिसके तहत विभाग की नियमावली या विनियमावली में तय भर्ती प्रक्रिया पूरी न करने के बावजूद नौकरी करने वालों ने सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन का दावा किया था। इस तरह के तमाम मामले अदालतों में लंबित हैं।
इंटीग्रेटेड नीति में साढ़े 12 एकड़ में टाउनशिप बनाने की अनुमति
राज्य सरकार ने इंटीग्रेटेड टाउनशिप नीति में न्यूनतम 25 एकड़ में इसे बसाने की बाध्यता समाप्त कर दी है। बिल्डर न्यूनतम 12.5 एकड़ भूमि पर अब इस योजना में टाउनशिप बना सकेंगे। आवंटियों के हितों को देखते हुए इंटीग्रेटेड टाउनशिन नीति में स्वीकृत डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) में संशोधन करने और परियोजना अवधि में विस्तार की सुविधा दे दी गई है। 25 एकड़ तक तीन साल और इससे अधिक होने पर पांच साल में टाउनशिप को पूरा करना होगा। इससे इन योजनाओं में आवंटियों को फ्लैट और भूखंड मिलने का रास्ता हो गया है।
इंटीग्रेटेड टाउनशिप नीति-2005 और 2014 के अधीन स्वीकृत और अब तक निष्क्रिय परियोजनाओं को निरस्त करने व चालू करने का रास्ता साफ हो गया है। इस नीति के तहत बिल्डरों को न्यूतम 25 एकड़ से लेकर 500 एकड़ में टाउनशिप विकसित करने के लिए विकास प्राधिकरण व आवास विकास परिषद के माध्यम से लाइसेंस दिया गया था। इस योजना में परियोजनाओं को आठ से लेकर 12 साल में पूरा करना था, लेकिन कई परियोजनाएं पूरी नहीं हो पाई और आवंटियों का पैसा फंस गया।
क्षेत्रफल में कटौती व विस्तार की सुविधा
इंटीग्रेटेड टाउनशिप नीति में वर्ष 2005 में 22 और वर्ष 2014 में 18 बिल्डरों को लाइसेंस दिए गए। इसमें से पांच परियोजनाएं पूरी हुई। सात परियोजनाएं निष्क्रिए हैं और 14 पर काम चल रहा है। टाउनशिप बस न पाने की मुख्य वजह भूमि न मिल पाना बताया गया। अधिकतर बिल्डर 25 एकड़ भूमि भी नहीं जुटा पाए। इसीलिए संशोधित नीति में बिल्डरों को एक मौका देने का फैसला किया गया है। फैसले के मुताबिक, बिल्डरों को क्षेत्रफल में कटौती और विस्तार की सुविधा दी गई है।
कैबिनेट फैसले के मुताबिक, बिल्डरों को न्यूनतम 12.5 एकड़ क्षेत्रफल में टाउनशिप बसाने की सुविधा दे दी गई है। पहले 25 एकड़ न्यूतम भूमि चाहिए थी। कटौती के बाद छोड़ी गई भूमि किसी थर्ड पार्टी को नहीं दिया जाएगा। परियोजना क्षेत्र के बाहर 10 प्रतिशत क्षेत्र पर भी विकास की अनुमति दी जाएगी। बिल्डरों को पूलिंग के आधार पर भूमि लेने की भी सुविधा दी गई है। भू-उपयोग परिवर्तन की सुविधा भी दी जाएगी।
तीन माह में देना होगा डीपीआर
इस नीति के तहत बिल्डरों को संशोधन डीपीआर तीन माह में विकास प्राधिकरण या आवास विकास परिषद को देना होगा। पुराने ले-आउट में बदलाव की जरूरत होने पर भी इसे प्रस्तुत करना होगा। टाउनशिप के अंदर लोगों की जरूरत के आधार पर सभी सुविधाएं देनी होंगी। नई नीति में 25 एकड़ तक की टाउनशिप को तीन साल और 25 एकड़ से अधिक पर पांच साल में पूरा करना होगा।
80 हजार एकड़ विस्तार शुल्क
परियोजना अवधि समाप्त होने वाले बिल्डरों को उसे पूरा करने के लिए केस-टू-केस के आधार पर 80 हजार रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से डीपीआर स्वीकृति के समय विस्तार शुल्क देना होगा। डीपीआर संशोधन न कराने वालों को परियोजना अवधि विस्तार, समय विस्तार शुल्क लेआउट पास कराते समय देना होगा।
गन्ना अधिनियम रद्द: उत्तर प्रदेश उपकर गन्ना अधिनियम, 1956 को निरसित (रद्द) किए जाने के संबंध में निर्णय लिया गया। कार्यालय उप निबन्धक सदर व कार्यालय उप/सहायक महानिरीक्षक निबन्धन जनपद- प्रयागराज हेतु भूमि उपलब्ध कराए जाने के संबंध में फैसला हुआ।