प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह कहते हुए सख्त रुख अपनाया कि शैक्षणिक संस्थान केवल शिक्षा देने के लिए हैं, न कि व्यावसायिक गतिविधियों के लिए, उत्तर प्रदेश के सभी शैक्षणिक संस्थानों में प्रदर्शनी, मेले या अन्य किसी भी व्यावसायिक गतिविधि के आयोजन पर रोक लगा दी है। यह आदेश उस जनहित याचिका (PIL) में दिया गया, जिसमें एक डिग्री कॉलेज के परिसर में इस वर्ष की शुरुआत में एक वाणिज्यिक मेला आयोजित किए जाने को चुनौती दी गई थी।
चीफ़ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस क्षितिज शैलेन्द्र की खंडपीठ ने कहा — “शैक्षणिक संस्थान केवल शिक्षा देने के लिए होते हैं। ऐसे संस्थानों की भूमि और भवन, जिनमें खेल के मैदान भी शामिल हैं, का उपयोग किसी भी व्यावसायिक गतिविधि के लिए नहीं किया जा सकता, चाहे उसका नाम प्रदर्शनी, व्यापार मेला, अन्य प्रकार का मेला या वस्तुओं की बिक्री कुछ भी हो।”
अदालत ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों का बुनियादी ढांचा केवल शिक्षण, खेलकूद, सांस्कृतिक या पाठ्यक्रम से जुड़ी गतिविधियों के लिए ही इस्तेमाल किया जा सकता है, न कि किसी और उद्देश्य के लिए। पूरा मामला याचिकाकर्ता ने ब्राह्मणंद डिग्री कॉलेज, राठ (हमीरपुर) में आयोजित एक वाणिज्यिक मेले को रोकने की मांग की थी। आरोप था कि कॉलेज के प्राचार्य के आग्रह पर यह मेला पिछले वर्ष से लगातार आयोजित किया जा रहा है।
प्राचार्य की ओर से यह दलील दी गई कि मेला अब समाप्त हो चुका है, इसलिए याचिका निरर्थक है। अदालत ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए कहा कि — “सिर्फ इस कारण कि मेला समाप्त हो गया, यह मामला समाप्त नहीं हो जाता क्योंकि यह मुद्दा व्यापक जनहित से जुड़ा है।” अदालत ने उप-जिलाधिकारी (राठ) से पूछा कि आखिर मेले की अनुमति कैसे दी गई, जबकि अदालत पहले ही ऐसे आयोजनों पर रोक लगा चुकी थी।
एसडीएम ने जवाब में कहा कि उन्हें अदालत के 2020 के आदेश की जानकारी नहीं थी। उस समय एक एकल न्यायाधीश ने निर्देश दिया था कि स्कूलों और कॉलेजों की भूमि व भवनों का उपयोग केवल शिक्षण और खेल से जुड़ी गतिविधियों के लिए किया जाए। किसी भी विवाह समारोह या व्यावसायिक आयोजन की अनुमति न दी जाए। खंडपीठ ने कहा कि बावजूद इसके, राज्य के कई शैक्षणिक संस्थानों में अभी भी ऐसे आयोजन हो रहे हैं।
कई मामलों में बिना अनुमति तो कई में प्रशासनिक अधिकारियों की अनुमति से मेले व प्रदर्शनी आयोजित की जाती हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि,“ऐसा कोई कानून नहीं है जो शैक्षणिक संस्थानों की संपत्ति के व्यावसायिक उपयोग की अनुमति देता हो। केवल प्रशासनिक अनुमति से यह नहीं किया जा सकता।” अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि — “एक माह के भीतर सभी जिलों के प्रशासन, पुलिस और शैक्षणिक संस्थानों को यह स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए जाएं कि शैक्षणिक परिसरों में किसी भी व्यावसायिक गतिविधि की अनुमति नहीं दी जाएगी।”
साथ ही, रजिस्ट्रार जनरल को आदेश दिया गया कि इस निर्णय की प्रति राज्य के मुख्य सचिव को एक सप्ताह में भेजी जाए ताकि अनुपालन सुनिश्चित हो सके। अंत में अदालत ने कहा कि ब्राह्मणंद डिग्री कॉलेज का मैदान किसी भी व्यावसायिक गतिविधि के लिए आगे उपयोग नहीं किया जाएगा और याचिका का निपटारा कर दिया।