सत्संग से अध्यात्म पथ प्रकाशित और जीवन का अंतःकरण पवित्र होता है: आचार्य अशोक

100 News Desk
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शाहजहाँपुर: शिव सत्संग मण्डल के मंडलाध्यक्ष आचार्य अशोक ने कहा कि सत्संग से अध्यात्म पथ प्रकाशित और जीवन का अंतःकरण पवित्र होता है। वह परी मैरिज लान में मण्डल द्वारा आयोजित वार्षिक धर्मोत्सव में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। आचार्य ने कहा कि सत्य का साथ एवं असत्य व अन्ध विश्वास का निवारण सत्संग कहलाता है।

सत्संग और स्वाध्याय से कुसंस्कारों का शमन, अहंकार का निर्मूलन एवं पवित्र अंतःकरण की निर्मिति होती है। अतः सत्संग अध्यात्म पथ प्रकाशक एवं जीवन सिद्धि का सहज मार्ग है। भगवान शिव ज्ञान विवेक विचार और समाधि अर्थात् समाधान के आराध्य हैं। वस्तुतः अज्ञान ही जीवन की सबसे बड़ी बाधा है। बताया कि  शिव परमतत्व अत्यंत प्रखर मुखर और चैतन्य रहता है।इसलिए अपने अंतःकरण को शुभ संकल्पों से भावित कर शुभता, सकारात्मकता, और स्वयं में अंतर्निहित अनंतता का जागरण करें !

लखनऊ मण्डल के अध्यक्ष राजेश पाण्डेय ने कहा कि संसार के सभी बड़े धर्मों के धर्मगृंथ हैं, उनमें भी कोई एक सर्व मान्यहै। जिससे धर्म  विशेष की व्यवस्था चलती है| सनातन हिंदू धर्म में भी अनेकानेकधर्म गृंथ होने पर भी वेदों को मूल धर्मगृंथ माना गया है। यह सनातन काल से इस धरापर  विद्यमान है कालान्तर में इसी से सभी धर्मों का उदगम हुआ ऐसा लगता है।

अतः सत्यान्वेषण हेतु वेद मनुष्यों का मार्गदर्शन करते चले आए हैं तथा उस विद्या को विद्वानों पाठ्यपुस्तकों में सरलता से सम्मलित किया है।सदग्रंथ अध्ययन  हमारी प्राथमिकता  बने। बताया कि ग्रंथों का अध्ययन वैचारिक नावीन्यता के साथ-साथ उत्साह, उमंग, सही जीवन दृष्टि और लक्ष्य की संप्राप्ति में सहायक है।अतः आत्म सामर्थ्य के जागरण और जीवन में दिव्यता प्रकाशन हेतु सदग्रंथों की ओर लौटें ।

लखीमपुर के जिलाध्यक्ष जमुना प्रसाद ने ईशतत्व की चर्चा करते हुए कहा कि वह परमेश्वर जिसने सूरज चाँद तारे पशु पक्षी वनस्पति आदि समस्त संसार बनाया है वही हमारी स्तुति के योग्य हैअन्य नहीं | अतः हमें बुद्धिपूर्वक विचार पूरी गम्भीरता केसाथ करना होगा तभी हम ईशतत्व को समझ सकेंगे अन्यथा नहीं।

लखनऊ के योग प्रशिक्षक डॉ संदीप चौरसिया ने कहा कि हम जो भजन ध्यान करते हैं वह क्या जगत को बनाने वाला है या उस विधाता की रचना तो नहीं है यदि ऐसा है तो उपासनीय नही है उस एक परमेश्वर की अनादिकाल से विद्वान मनुष्य उपासना करते आये हैं। वही समस्तमनुष्यों का वंदनीय है| सभी सत्पुरुषों ने उसी परमेश्वर कीउपासना कर महानता पायी है आैर हमारे लिए पृतीक रूप मन्दिर वनवाये जिनका नाम शिवालय रखा अन्य नही।

प्रचारक प्रेम भाई ने कहा कि ज्ञान एक सार्थक, दिव्य और आनंदमय जीवन की कुंजी है।  भ्रम और अज्ञान को दूर करने के लिए आत्मज्ञान की खोज करें।  ज्ञान हमें सशक्त, उन्नत और प्रबुद्ध करता है और यह शांति तथा शक्ति प्रदान करता है। समापन पर राष्ट्रीय महामंत्री त्रिपुरेश पांडेय ने कहा कि हम शिव नाम से उस परमात्मा को याद करें।अपनें पूजाघरों में साकार रूप में केवल शंकर भगवान की मूर्ति या चित्र लगायें, सम्भव हो तो परिवार के साथ अन्यथा अकेले ही आरती करें ।

रातृिकालमें सोने से पूर्व तथा पृातः जल्दी उठकर शौचादि से निवृत्त होकर सीधे बैठकर  प्रकाश स्वरूप से ध्यान करें|परमात्माकी दया से आपका अन्तर जगमगा उठेगा|भगवान शिव की दया से आपका जीवन दिव़्य हो जायेगा धन्य हो जायेगा इस दिव़्य जीवन को आप धारण करें।इसके अलावा रवि लाल रामअवतार, नन्हेलाल,सोनपाल, व्यवस्थापक यमुना प्रसाद आदि ने बताया कि शिवोपासना से ही समग्र जीवन का कल्याण संभव है। अम्बरीष कुमार सक्सेना एवं रवि वर्मा के संयुक्त संचालन में इस धर्मोत्सव की अध्यक्षता डॉ कलिका प्रसाद ने की।

कार्यक्रम का शुभारम्भ राष्ट्रीय महामंत्री त्रिपुरेश पांडेय ने दीप प्रज्ज्वलित कर एवं बहन श्रुति ने सामूहिक ईश प्रार्थना से किया। श्रीकृष्ण, रामचंद्र,योग प्रशिक्षक सत्यम भैया, सुनयना, प्रतिज्ञा, शिवा, अथर्व, उन्नति, आनंद, साक्षी, सत्यम कुमार,शिव महिमा, सौम्य,शिवम तथा रोहित वर्मा ने प्रेरणादायी भजन सुनाकर श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर लिया।हरिओम,बाबूराम,गोपाल,रजनीश, डॉ रोहित कुमार वर्मा,वेद प्रकाश,रघुनाथ आदि ने धर्मोत्सव में खासा योगदान किया।

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