हिंदी पत्रकारिता अपने 200 साल पूरे कर रही है। उसकी इस यात्रा के एक चमकती एक्टिविस्ट, संपादक और स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी का आज जन्मदिन है। 26 अक्टूबर 1890 को जन्मे गणेश शंकर विद्यार्थी, एक भारतीय पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेस नेता थे। उनकी जन्म जयंती पर उन्हें और उनके संपादन में निकले प्रताप की पत्रकारिता और उसके आदर्श और मूल्यों को याद करने का दिन है।
गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने लिखा…, ‘हम अपने देश और समाज की सेवा के पवित्र काम का भार अपने ऊपर लेते हैं, हम अपने भाइयों और बहनों को उनके कर्तव्य और अधिकार समझने का तथा शक्ति प्रयत्न करेंगे, राजा और प्रजा में एक जाति और दूसरी जाति में एक संस्था और दूसरी संस्था में बैर और विरोध अशांति और असंतोष ना होने देना हम अपना परम कर्तव्य समझेंगे….’
गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने लिखा…, ‘किसी की प्रशंसा या अप्रशंसा, किसी की प्रसन्नता या अप्रसन्नता किसी की घुड़की या धमकी हमें अपने सुमार्ग से विचलित न कर सकेगी। सत्य और न्याय हमारे भीतरी पथ प्रदर्शक होंगे। सांप्रदायिक और व्यक्तिगत झगड़ो से ” प्रताप ” सदा अलग रहने की कोशिश करेगा। उसका जन्म किसी विशेष सभा, संस्था, व्यक्ति या मत के पालन – पोषण लक्षण या विरोध के लिए नहीं हुआ है। किंतु उसका मत स्वतंत्र विचार और उसका धर्म सत्य होगा…’
गणेश शंकर विद्यार्थी (26 अक्टूबर 1890 – 25 मार्च 1931) एक निडर पत्रकार, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता और स्वतंत्रता आंदोलन के कार्यकर्ता थे। उन्होंने 1913 में हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र ‘प्रताप’ की स्थापना की और किसानों तथा श्रमिकों की आवाज बने। विद्यार्थी 1931 में कानपुर में सांप्रदायिक दंगों को शांत कराने का प्रयास करते हुए शहीद हुए।
जीवन परिचय- जन्म और शिक्षा:
26 अक्टूबर 1890 को इलाहाबाद में जन्मे, उन्होंने अपनी शिक्षा मुंगावली (ग्वालियर) में प्राप्त की और उर्दू व फ़ारसी में निपुण थे।
पत्रकारिता: विद्यार्थी ने एक क्लर्क के रूप में करियर शुरू किया, लेकिन जल्द ही पत्रकारिता को अपना पेशा बना लिया।
प्रताप का प्रकाशन: 1913 में उन्होंने ‘प्रताप’ नामक हिंदी साप्ताहिक अखबार शुरू किया, जो किसानों, श्रमिकों और दबे-कुचले लोगों की आवाज बना। उन्होंने बाद में ‘प्रताप’ को दैनिक समाचार पत्र के रूप में भी प्रकाशित किया।
राजनीतिक भागीदारी: उन्होंने होम रूल आंदोलन, असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा जैसे स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लिया। 1929 में उन्हें उत्तर प्रदेश प्रांतीय कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष चुना गया।
मृत्यु ! शहादत : 25 मार्च 1931 को कानपुर में सांप्रदायिक दंगों के दौरान उन्होंने निहत्थे लोगों को बचाते हुए अपनी जान दे दी। एक हिंसक भीड़ ने उन पर हमला कर उनकी हत्या कर दी।
गांधी जी का संदेश : महात्मा गांधी ने उनकी शहादत पर कहा कि उनकी मृत्यु एक महान उद्देश्य के लिए हुई है और ऐसी मृत्यु ईर्ष्या योग्य है।
सम्मान : उनकी याद में कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज (GSVM) का नाम रखा गया है।
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