नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने नागरिकता संशोधन कानून ( CAA ) से संरक्षित शरणार्थियों के भारत में वोटर बनने को लेकर असमंजस को दूर कर दिया है। सीजेआई सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने मौखिक टिप्पणी में कहा है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न का दावा करके भारत आए शरणार्थियों को सीएए के तहत नागरिकता मिलना पूरी तरह से उनके दावों की सत्यता की पुष्टि पर निर्भर है। उन्होंने कहा SIR प्रक्रिया की वजह से ऐसे शरणार्थियों के मन में पैदा हो रहे एक तरह के भय को लेकर यह टिप्पणी की है। और वोटर लिस्ट में नाम शामिल होने का भी रास्ता बता दिया है।
एसआईआर से सीएए वाले शरणार्थियों का क्या होगा?
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 तीन पड़ोसी देशों में धर्म के आधार पर सताए गए अल्पसंख्यकों के हक में है, लेकिन ऐसे प्रत्येक दावे की छानबीन और उनका सत्यापन अधिकारियों के द्वारा किया जाना है। सीजेआई की अगुवाई वाली बेंच ने यह मौखिक टिप्पणी आत्मादीप नाम के एक एनजीओ की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान की है, जिसकी पैरवी वकील अनीश रॉय ने की।
अपनी याचिका में एनजीओ ने कहा है कि तीन पड़ोसी देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों, खासकर बांग्लादेश से जो भागकर आए हैं और पश्चिम बंगाल में रह रहे हैं, उन्हें इस बात का डर है कि स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन ( SIR ) की जो प्रक्रिया चल रही है, उससे वह कहीं के भी नहीं (stateless) रह जाएंगे।
याचिका में बताया गया है कि सीएए के प्रावधान के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत आ चुके धार्मिक अल्पसंख्यकों को ‘अवैध प्रवासी’ नहीं माना जाएगा। ये धार्मिक अल्पसंख्यक हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई हैं। इसके अनुसार ये लोग सर्टिफिकेट ऑफ रजिस्ट्रेशन या सर्टिफिकेट ऑफ नेचुरलाइजेशन का आवेदन दे सकते हैं। एनजीओ की दलील है कि जो शरणार्थी इस तरह का आवेदन देते हैं, उन्हें नागरिकता के अधिकार और उसके विशेषाधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।